हमीरपुर जिला की ग्राम पंचायत बफड़ीं के गांव हरनेड़ की 68 वर्षीय महिला किसान तीर्थू देवी ने यह सिद्ध कर दिखाया है कि रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों के बिना भी खेतों से उत्कृष्ट पैदावार ली जा सकती है। उन्होंने प्राकृतिक खेती की विधि अपनाकर एक ही खेत में, एक ही सीजन में तीन फसलें — मक्की, सोयाबीन और भिंडी — उगाकर अन्य किसानों के लिए प्रेरणा पेश की है।
प्राकृतिक खेती से मिली बेहतर पैदावार
तीर्थू देवी ने बताया कि उन्होंने कृषि विभाग की आतमा परियोजना (ATMA Project) के मार्गदर्शन में अपने खेतों में देसी मक्की, सोयाबीन, तिल और भिंडी की बुवाई की थी। उन्होंने रासायनिक खाद या कीटनाशकों का बिल्कुल प्रयोग नहीं किया। हालाँकि अत्यधिक बरसात के कारण तिल की फसल खराब हो गई, लेकिन मक्की, सोयाबीन और भिंडी की पैदावार बहुत अच्छी रही। उन्होंने बताया कि सितंबर के पहले सप्ताह में मक्की की फसल निकाल ली गई थी, जबकि पिछले सप्ताह सोयाबीन की फसल तैयार हो गई। देसी भिंडी के पौधों में अभी भी हर दिन नई फलियाँ निकल रही हैं, जिन्हें स्थानीय बाजार में अच्छे दाम मिल रहे हैं।
आतमा परियोजना से मिली प्रेरणा
तीर्थू देवी ने बताया कि आतमा परियोजना के अधिकारियों ने उनके गांव में प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाया था। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने पारंपरिक खेती की जगह प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) को अपनाया। गांव के प्रगतिशील किसान ललित कालिया ने भी उन्हें तकनीकी सलाह और सहायता दी। तीर्थू देवी ने कहा कि प्राकृतिक खेती से न केवल लागत घटती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहता है।
अन्य किसानों से की अपील
तीर्थू देवी ने प्रदेश के किसानों और बागवानों से आह्वान किया कि वे भी प्राकृतिक खेती और फसल विविधीकरण की ओर कदम बढ़ाएं। उन्होंने कहा — “रासायनिक खाद के बिना भी खेती संभव है। यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर है, बल्कि इससे आमदनी भी कई गुना बढ़ाई जा सकती है।”
 
					