रामपुर बुशहर में 1 से 3 नवंबर तक आयोजित होगा अश्व मंडी/हॉर्स शो — पारंपरिक चामुर्थी घोड़े होंगे मुख्य आकर्षण

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला के ऐतिहासिक नगर रामपुर बुशहर में आयोजित होने वाला अंतर्राष्ट्रीय लवी मेला इस वर्ष भी पारंपरिक उत्साह और सांस्कृतिक वैभव के साथ आयोजित किया जा रहा है। लवी मेला न केवल हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि यह व्यापार, पारंपरिक कला और पशुधन विनिमय का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।


अश्व मंडी / हॉर्स शो — 1 से 3 नवंबर तक

लवी मेले के तहत इस वर्ष 1 नवंबर से 3 नवंबर 2025 तक अश्व मंडी/हॉर्स शो का आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश की चामुर्थी नस्ल के घोड़ों के संरक्षण, प्रजनन और व्यापार को प्रोत्साहन देना है। 1 नवंबर: घोड़ों का पंजीकरण किया जाएगा। 2 नवंबर: अश्वपालकों के लिए जागरूकता शिविर एवं किसान गोष्ठी आयोजित की जाएगी। 3 नवंबर: 400 मीटर और 800 मीटर घुड़दौड़, गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिता और पुरस्कार वितरण समारोह होगा। इसी दिन मुख्य अतिथि द्वारा सर्वश्रेष्ठ घोड़ों का चयन और सम्मान किया जाएगा।


चामुर्थी नस्ल — “ठंडे रेगिस्तान का जहाज”

तिब्बत पठार से उत्पन्न चामुर्थी नस्ल के घोड़े अपनी अद्भुत सहनशक्ति, मजबूत शरीर और ऊँचाई वाले क्षेत्रों में चलने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। इन्हें स्थानीय रूप से “ठंडे रेगिस्तान का जहाज” कहा जाता है।इनका प्रमुख प्रजनन क्षेत्र — लाहौल-स्पीति जिले की पिन घाटी, किन्नौर जिले की भाभा घाटी है। ये घोड़े न केवल हिमाचल में, बल्कि उत्तराखंड और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं।


राज्य प्रशासन और पशुपालन विभाग का संयुक्त प्रयास

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी हिमाचल प्रदेश पशुपालन विभाग जिला प्रशासन शिमला के सहयोग से अश्व प्रदर्शनी का आयोजन कर रहा है। इस वर्ष पड़ोसी राज्यों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है, जिससे इस पारंपरिक आयोजन को अंतरराज्यीय स्वरूप मिल सकेगा। खरीदार मुख्य रूप से उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले और अन्य पड़ोसी राज्यों से आते हैं, जिससे यह आयोजन स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाता है।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

लवी मेला का आरंभ 17वीं शताब्दी में बुशहर राज्य और तिब्बती शासकों के बीच हुए व्यापार समझौते के बाद हुआ था। “लवी” शब्द “लोवी” से बना है, जिसका अर्थ है ऊन काटना — इसीलिए ऊन और ऊनी परिधानों का व्यापार इस मेले का अभिन्न हिस्सा रहा है।


आयोजन का महत्व

यह पारंपरिक मेला सांस्कृतिक आदान-प्रदान, व्यापार, पशुधन संवर्धन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। अश्व मंडी के माध्यम से हिमाचल प्रदेश के पारंपरिक घोड़े न केवल पहचान पा रहे हैं, बल्कि पशुपालकों को आर्थिक आत्मनिर्भरता भी प्रदान कर रहे हैं।