हिमाचल प्रदेश उद्योग विभाग द्वारा जिला बिलासपुर में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के सशक्तिकरण के उद्देश्य से एक जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला का मकसद राज्य में एमएसएमई पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाना, नई तकनीकों को अपनाने को प्रोत्साहित करना, प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ाना तथा सतत औद्योगिक प्रथाओं को बढ़ावा देना था।
कार्यशाला का शुभारंभ महाप्रबंधक, उद्योग विभाग बिलासपुर आर. अभिलाषी के संबोधन से हुआ। उन्होंने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है, जो रोजगार सृजन, उत्पादन वृद्धि और ग्रामीण-शहरी औद्योगिक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का उद्देश्य उद्यमियों को आत्मनिर्भर और तकनीकी रूप से सक्षम बनाना है।
कार्यक्रम के दौरान विवेक तिवारी ने क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE-CDP) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत उद्यमों को क्लस्टर स्तर पर उच्च तकनीक, आधुनिक मशीनरी और सामान्य अवसंरचना सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं, जिससे उत्पादकता में वृद्धि, लागत में कमी और गुणवत्ता में सुधार संभव हो रहा है।
विशेष सत्र में एमएसएमई हरितीकरण पहल (MSME Greening Initiative) पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को पर्यावरण-अनुकूल औद्योगिक प्रक्रियाओं, ऊर्जा दक्षता, अपशिष्ट प्रबंधन और हरित तकनीक के फायदों से अवगत कराया। बताया गया कि हरित तकनीक अपनाने से न केवल पर्यावरण संरक्षण होता है, बल्कि यह लागत बचत और वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता को भी बढ़ाती है।
इसके अतिरिक्त प्रतिभागियों को स्पाइस (SPICE) और गिफ्ट (GIFFT) योजनाओं की भी जानकारी दी गई। इन योजनाओं का उद्देश्य उद्यमों को नवाचार, कौशल विकास, तकनीकी उन्नयन और सतत व्यवसायिक मॉडल के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाना है।
इस अवसर पर विनय वर्मा, प्रबंधक, एसडब्ल्यूसी ग्वालथाई सहित उद्योग विभाग के अन्य अधिकारी भी उपस्थित रहे। उन्होंने प्रतिभागियों के साथ संवाद कर उन्हें एमएसई-सीडीपी योजना, एमएसएमई प्रदर्शन सुधार (RAMP) योजना और सर्कुलर अर्थव्यवस्था आधारित औद्योगिक दृष्टिकोण के बारे में विस्तृत जानकारी दी।
कार्यशाला में 50 से अधिक प्रतिभागियों — जिनमें स्थानीय उद्योगपति, उद्यमी, कारीगर, शिल्पकार और औद्योगिक हितधारक शामिल थे — ने भाग लिया। उन्होंने नवाचार, उत्पादकता वृद्धि, संसाधन दक्षता और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर अपने सुझाव साझा किए।
प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला को अत्यंत लाभकारी बताया और कहा कि इस प्रकार की पहलें उद्यमियों को नई औद्योगिक नीतियों, योजनाओं और तकनीकी संसाधनों से जोड़ने में सेतु का कार्य करती हैं।