ऊना, 10 जुलाई – मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संजीव वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि बरसात के मौसम में मलेरिया, डेंगू, स्क्रब टाईफस व पीलिया इत्यादि बीमारियाँ होने का अंदेशा रहता है। उन्होंने इन बीमारियों से बचने के लिए एहतियात बरतनी जरूरी है।
उन्होंने बताया कि मलेरिया मादा एनोफलिस मच्छर के काटने से होता है। मरीज को ठण्ड लगकर कंपकंपी द्वारा 103 डिग्री या इससे अधिक बुखार आता है। यह मच्छर खड़े पानी में प्रजनन करता है। इससे बचने के लिए खड़े पानी की निकासी का होना अत्यंत जरूरी है। उन्होंने बताया कि पशुओं द्वारा पानी पीने के लिए उपयोग किये जाने वाले बर्तनों को ढककर रखना जरूरी है।
उन्होंने बताया कि कोई भी बुखार मलेरिया हो सकता है। खून की जाँच करवा कर मलेरिया की सही पहचान होती है। उन्होंने बताया कि मलेरिया से बचाव व इलाज दोनों सम्भव है।
डाॅ संजीव वर्मा ने बताया कि डेंगू एडीज मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर दिन के समय काटता है तथा साफ पानी में पनपता है। डेंगू में तेज बुखार सिर दर्द, बदन दर्द तथा जोड़ों में दर्द व रक्तस्राव होता है। डेंगू से बचने के लिए सप्ताह में एक दृ दो बार कूलर तथा पानी की टंकी को जरूर साफ करें। टूटे बर्तन पुराने टायर टूटे घड़े इत्यादि को घर में न रखें ताकि उनमें पानी इकट्ठा न हो।
उन्होंने बताया कि बरसात के मौसम में आमतौर पर तेज बुखार से पीड़ित रोगियों की संख्या बढ़ जाती है यह बुखार स्क्रब टायफस हो सकता है। यह रोग खेतों, झाड़ियों व घास में रहने वाले चूहों पर पनपने वाले संक्रमित पिस्सुओं के काटने से फैलता है। इसमें तेज बुखार, जोड़ों में दर्द, शरीर में अकडन तथा कई बार गर्दन, वाजुओं के नीचे तथा कूल्हों के ऊपर गिल्टियाँ हो जाती है। इससे बचने के लिये घर के आसपास घास, खरपतवार उगने न दें। खेतों व झाड़ियों में काम करते समय पूरा शरीर (खासकर टाँगें, पाँव और वाजू) ढककर रखें।
सीएमओ ने बताया कि पीलिया (हेपेटाइटिस) हेपेटाइटिस ए तथा इ-दूषित पानी व दूषित खाने से होता है। यह लीवर से सम्बंधित बीमारी है। इसमें मरीज को हल्का बुखार, पेट दर्द, आँखों व त्वचा का रंग पीला होना, उल्टी व मितली का होना तथा थकावट महसूस होती है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संजीव कुमार वर्मा ने बताया कि जिला ऊना में मलेरिया,डेंगू, स्क्रब टाईफस व पीलिया व उल्टी, दस्त इत्यादि के इलाज हेतु सभी दवाइयाँ तथा जाँच सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में उपलब्ध है। अगर किसी भी व्यक्ति को उपरोक्त लक्षण हों तो तुरंत नजदीकी सरकारी स्वास्थ्य संस्थान में दिखाएँ व इलाज करवाएं।
उन्होंने जिला के लोगों से अपील की कि वे हमेशा स्वच्छ पानी का सेवन करें, पानी को उबाल कर या क्लोरीन मिला पानी प्रयोग करें, खाना खाने से पहले व बाद में तथा शौच जाने के बाद हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोएं, पीने के पानी के स्रोतों के पास शौच न करें। सडे, गले, कटे हुए व बासी खाद्य पदार्थो को न तो खरीदें तथा न ही इन्हे खाने में प्रयोग करें। खाने व पीने की चीजों को हमेशा ढक कर रखें, घरों में पानी की टंकियों की सफाई समय- समय पर अवश्य करें, उल्टी, दस्त लगने पर ओ.आर.एस. घोल व नमक का घोल पर्याप्त मात्रा में लें तथा नजदीकी स्वास्थ्य संस्थान में जाकर अपनी जांच एवं ईलाज करवाएं।
इसके अतिरिक्त बरसात के दिनों में जहरीले सांप तथा बिच्छू से बचने के लिए ध्यानपूर्वक घर से बाहर निकले। आम तौर पर साँप के काटने का तुरंत पता चल जाता है। इसके काटने पर दंश स्थान पर तीव्र जलन, उल्टी, मिचली, शॉक, अकडन या कंपकपी, अंगघात, पलकों का गिरना, नजर फटना अर्थात किसी वस्तु का एक स्थान पर दो दिखलाई देना, मांसपेशियों में ऐंठन, काटे गये हिस्से में तेज दर्द, हाथ पैरों में झनझनाहट, चक्कर आना, पसीना आना तथा दम घुटना आदि लक्ष्ण हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि साँप के काटने को रोका जा सकता है। साँप् को पकड़ने से हमेशा बचना चाहिए। उन स्थानों से हमेशा दूर रहें जहाँ साँप् होने की आशंका होती है जैसे कि लम्बी घास और पतियों के ढेर, चट्टानों और लकड़ी के गट्ठों में। यदि आपको साँप दिखता है तो उसे छेड़ें नहीं और उसे जाने दें। ऐसी जगह पर काम करते समय जहाँ साँप होने की आशंका हो, लम्बे और मजबूत जूते पहनें, वाजुओं और टांगों को ढककर रखें और चमड़े के दस्ताने पहनें। गर्म मौसम में रात को बाहर काम करने से बचें, क्योंकि इस समय साँप सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। इसके साथ ही कुएं या गड्डे में अनजाने में हाथ न डालें, बरसात में व अँधेरे में नंगे पांव न घूमें तथा जूतों को झाड़कर पहनें। साँप के काटने के उपचार में यह जरूरी है कि पीड़ित व्यक्ति को आपातकालीन चिकित्सा सहायता शीघ्र अति शीघ्र मिल जाये।
उन्होंने बताया कि साँप के काटने पर संयम रखें ताकि हृदय गति तेज न हो। हृदय गति तेज होने पर जहर तुरंत ही रक्त के माध्यम से हृदय में पहुंच कर नुकसान पहुंचा सकता है। पीड़ित व्यक्ति को शांत और आरामपूर्वक से रखें और जहर को फैलने से रोक ने के लिए स्थिर रखें। तुरंत एम्बुलेंस को कॉल करें और शीघ्र अति शीघ्र चिकित्सा सहायता के लिए नजदीकी स्वास्थ्य संस्थान ले जायें। स्थिति को देखते हुए डॉक्टर द्वारा पीड़ित व्यक्ति को साँप के काटने से होने वाले लक्षणों का मुकाबला करने के लिए एंटी स्नेक वेनम का इंजेक्शन लगाया जाता है जितनी जल्दी यह इंजेक्शन पीड़ित व्यक्ति को लगता है ये उतना ही प्रभावी होता है।
उन्होंने बताया कि किसी भी प्रकार की झाड़ फूँक करवाकर समय बर्बाद न करें। जिला ऊना में एंटी स्नेक वेनम (एएसवी ) सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, सिविल अस्पतालों तथा क्षेत्रीय अस्पताल में उपलब्ध है। सभी सप्ताह के 24 घंटे स्वास्थ्य संस्थानों में यह वैक्सीन हर समय लगाई जाती है तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में यह वैक्सीन डे डयूटी में लगाई जाती है।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संजीव कुमार वर्मा ने कहा कि बरसात के दिनों में किसी भी तरह की स्वास्थ्य सलाह लेने के लिए स्वास्थ्य हेल्पलाइन नम्बर 8894457225 पर सम्पर्क करें। इसी के साथ दूषित जल पीने से होने वाली बीमारियों को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा पेय जल स्रोतों से पानी के सैंपल लेकर भी जाँच करवाई जाएगी।
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