भारत रत्न अटल के जीवन के हर क्षेत्र में अटल थे उनके जीवन में अनेक उतार चढ़ाव आए मगर अटल जी ने अपने आदर्शों सिद्धांतों और राष्ट्रवादी विचारों में कभी समझौता नहीं किया राजनीतिक क्षेत्र में काम आने वाले लोगों के लिए उनके जीवन यात्रा एक प्रेरणा का पुंज है बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने 13 दिन और 13 महीने की सरकार भी चलाई, साथ ही 5 वर्ष का सफल कार्यकाल भी पूर्ण किया लेकिन कभी उनका सत्ता से मोह नहीं रहा। “मैं सत्ता भाव से नहीं सेवा भाव से राजनीति में आया हूं” उनका यह सिर्फ कथन ही नहीं था, बल्कि यह भाव उनके व्यक्तित्व में झलकता था।
अटल जी जब-जब संसद में बोले तब-तब देश के आम जनमानस की समस्याओं पर बोले और हमेशा समाधान की दिशा में तर्कपूर्ण बात कही। उनकी कही बात हर कसौटी पर खरी उतरती थी।
राजनीतिक एवं सामाजिक उत्कृष्ट के गुणों को आत्मसात करते हुए अटल जी ने अपनी वैचारिक मेधा शक्ति से सभी को प्रभावित किया। 1977 में मोरारजी भाई देसाई की जनता पार्टी की सरकार में अटल जी ने विदेश मंत्री की तौर पर भारतीय विदेश नीति का अटल अध्याय लिखा। अटल बिहारी वाजपेई भारतीय इतिहास के ऐसे प्रज्ञा पुरुष थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में भारत की गौरवशाली परंपरा एवं एक सूत्र वाक्य “वसुधैव कुटुंबकम” की विवेचना के साथ सर्वप्रथम हिंदी में भाषण देकर देश के मस्तक को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने का अद्वितीय कार्य किया। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर उनका वह भाषण “अंधेरा छटेगा सूरज निकलेगा कमल निकलेगा” की भविष्यवाणी सच साबित हुई अटल जी का प्रत्येक कथन कालजई था। शिक्षा का मौलिक अधिकार और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से गांव को शहरों से जोड़ने जैसे महत्वपूर्ण कदम अटल जी ने उठाए।
इतना ही नहीं, भारत में मेट्रो ट्रेन का विस्तार भी उनके नेतृत्व में ही शुरू हुआ। इसलिए उनको भारत के सुशासन और ढांचागत विकास का दूरदृष्टा भी कहा जाता है। “काल के कपाल पर लिखने-मिटाने” वाला वह अटल व्यक्तित्व हिमालय के सम्मान विराट था।
प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अटल बिहारी वाजपेई जी की जयंती 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया। सुशासन दिवस उनके प्रति एक सच्ची श्रद्धांजलि तो है ही, साथ में हम सभी के लिए प्रेरणा एवं कर्तव्य बोध का दिन भी है। सुशासन लाने के लिए जरूरी है कि व्यक्तित के स्वयं के जीवन में अनुशासन हो। आज पूरे देश को इस बात का गर्व है कि सुशासन की कल्पना जिनके नेतृत्व में साकार हो रही है, देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का जीवन अनुशासन की पराकाष्ठा है। हमारे देश में सुशासन की अवधारणा प्राचीन काल से श्रेष्ठ परम्पराओं में विकसित हुई है,
वे औपनिवेशिक काल में थोड़ा अवरूद्ध जरूर हुई। औपनिवेशिक काल से प्रशासनिक व्यवस्था के साथ जुड़े भ्रष्टाचार, अन्याय, पक्षपात शोषण, असमानता एवं नौकरशाही की जटिलताओं ने एक काले अध्याय की शुरुआत की।
सुशासन की पहली मूलभूत आवश्यकता है, जवाबदेही, क्योंकि निर्णयों के अच्छे परिणाम तभी प्राप्त किया जा सकते हैं, जब हम उनके प्रति जवाबदेह हो। इस जवाबदेही का प्राणतत्व पारदर्शिता होती है, अतः सुशासन के लिए हमें जवाबदेही के साथ व्यवस्था में पारदर्शिता भी लानी होगी। यह भी जरूरी है कि सुशासन कायम करने के लिए सरकार न सिर्फ समुदाय की आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी हो, अपितु वह सुशासन को न्यायसंगत एवं समावेशी स्वरूप भी प्रदान करें। यह ऐसा हो कि सभी समूहों को प्रक्रिया में सम्मिलित होने का अवसर मिले और इसका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अंतोदय की संज्ञा दी। सुशासन को प्रभावी एवं कुशल बनाने के लिए समयबद्धता आवश्यक होती है। अतः इस पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।
यह खुशी की बात है कि मोदी सरकार ने सिर्फ “सुशासन दिवस” की घोषणा मात्र नहीं की है, अपितु इस दिशा में व्यावहारिक पहल भी शुरू की है। डिजिटल इंडिया के माध्यम से जटिल प्रक्रिया को सरल किया गया है। पहले लोग किसी भी कार्यवाही में अपने दस्तावेज प्रमाणित कराने के लिए अधिकारी, सरपंच, नंबरदार और प्रधानाचार्य के चक्कर लगाते थे, मगर आज सेल्फ अटेस्ट कर अपने ही हस्ताक्षर कर सकते हैं। 2014 से अब तक 1486 अप्रचलित व अनावश्यक केंद्रीय कानून रद्द किए गए हैं।
सुशासित राष्ट्र एक “आदर्श राष्ट्र” होता है। यह और भी गौरवपूर्ण है कि हमारे देश में सुशासन की पहल अत्यंत सकारात्मक माहौल में शुरू हुई है। टिकाऊ मानव विकास, स्वस्थ एवं जीवंत लोकतंत्र, मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र, अवसरों की समानता तथा जवाबदेह राजनीतिक नेतृत्व के लिए हमें सुशासन की दिशा में मजबूती के साथ सधे हुए कदम बढ़ाने होंगे। क्योंकि सुशासन संयोग से उत्पन्न नहीं होता है। बीते 8 वर्षों में हर भारतीय इस बात का गर्व कर सकता है कि नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश में जो विकास हुआ, वह सुशासन की कसौटी पर खड़ा उतरा है – जनधन योजना, मुद्रा योजना, प्रशासन गांव की ओर, उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान निधि, सेना का सुदृढीकरण और डिजिटल इंडिया आदि अनेक उदाहरण है।
भारत सरकार व्यवस्थाओं को पारदर्शी, प्रभावी, कुशल, न्यायसंगत और समावेशी बनाने के लिए समर्पित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि, हमारी भूमिका अवसरों को बढ़ाने और उनके मार्ग से बाधाओं को दूर करने की है। यह भी जरूरी है कि प्रत्येक नागरिक के जीवन में सरकार का हस्तक्षेप कम से कम हो। मोदी सरकार के 10 वर्ष सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण के लिए समर्पित हुए हैं। इसलिए मोदी सरकार का सुशासन “सर्वे भवन्तु सुखिनः” मंत्र को चरितार्थ कर रहा है।