हिमाचल || 20 दिसम्बर 2024 || किसान सभा ने किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस लाने के इन प्रयासों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया , 23 दिसंबर 2024 को भारत में जिला स्तर पर इस नीति की प्रतियां जलाने के लिए एसकेएम इस के विरोध में शामिल होंगी। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जनता के सुझावों के लिए प्रसारित “कृषि विपणन पर राष्ट्रीय नीति रूपरेखा” के मसौदे ने आरएसएस- भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के भयानक इरादों को उजागर कर दिया है। यह किसानों के हितों की बलि चढ़ाने और कॉर्पोरेट मुनाफे को निरंतर बढ़ाने करने की साजिश है। छोटे उत्पादकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और उन्हें खेती से बाहर कर देगा। किसान सभा ने राष्ट्रीय नीति रूपरेखा को तुरंत वापस लिए जाने की मांग की।
नवउदारवादी कट्टरपंथियों ने इसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में बाजार उन्मुखीकरण सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है, क्योंकि सरकार को उसके पिछले बड़े कदम तीन किसान-विरोधी कृषि कानूनों को अधिनियम के माध्यम से को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। शासक वर्ग के इलाकों और कॉरपोरेट मीडिया में जश्न का माहौल है कि इस मसौदे द्वारा, केंद्र ने सख्त बाजार सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए एक ” परामर्शी और प्रेरक तरीके” के लिए रास्ता खोल दिया है और इस तरह पिछले दरवाजे से घृणास्पद और निरस्त कृषि कानूनों के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को वापस लाने में सफलता मिल रही है।
मसौदे की वस्तुपरक समीक्षा से पता चलता है कि केंद्र ने संघर्षशील किसान आंदोलन द्वारा उठाई गई किसी भी गंभीर मांग जैसे एमएसपी को कानूनी बनाना, कृषि में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, किसान पक्षीय ऋण सुविधाएं आदि पर ध्यान नहीं देने का विकल्प चुना है। जबकि मसौदा इस तथ्य का दिखावटी समर्थन करता है कि संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत कृषि विपणन राज्य का विषय है, मसौदे की भावना राज्य सरकारों की शक्ति को खत्म करना तथा राज्य समर्थित बाजार बुनियादी ढांचे को खत्म करना व एपीएमसी की भूमिका को खत्म करना है। जिससे छोटे व मध्यम किसान निजी व्यापारिक कार्टेलों द्वारा शोषण के लिए अत्यधिक असुरक्षित हो जाएंगे।
मसौदे में सुझाए गए प्रमुख सुधारों में निजी थोक मंडियों की स्थापना, कॉर्पोरेट प्रोसेसर और निर्यातकों द्वारा सीधे खेत से खरीद, पारंपरिक बाजार यार्डों को कॉर्पोरेट नियंत्रित गोदामों और साइलो से बदलना और एकीकृत राज्यव्यापी बाजार शुल्क एवं व्यापार लाइसेंस प्रणाली शुरू करना शामिल है। यह महत्वपूर्ण है कि रिलायंस एवं अडानी सहित बड़े व्यापारिक घरानों ने हरियाणा के सिरसा और पंजाब के लुधियाना जैसे क्षेत्रों में व्यापक गोदाम बुनियादी ढांचे और निजी रेलवे नेटवर्क का निर्माण किया है।
मसौदे में प्रस्ताव है कि बड़ी कंपनियां एपीएमसी मार्केट यार्डों को दरकिनार करते हुए सीधे किसानों से उपज खरीद सकती हैं। इसके अतिरिक्त, भंडारण बुनियादी ढांचे को निजी निगमों को सौंपने से मूल्य अस्थिरता के दौरान किसानों के लिए मौजूद महत्वपूर्ण सुरक्षा ख़त्म हो जाएगी और किसानों को कीमतों पर मोल-भाव करने के लिए कोई विकल्प न देकर कॉर्पोरेट शोषण की शिकार बनाया जाएगा। बड़े व्यवसाय एमएसपी के सख्त खिलाफ हैं क्योंकि उनकी रणनीति सबसे सस्ती दर पर उपज खरीद, मूल्य संवर्धन कर इसकी ब्रांडिंग करके बाजार में बेच अत्यधिक लाभ सुनिश्चित करना है। इस तरह, बाजार दक्षता के नाम पर बड़े व्यवसाय किसानों के साथ-साथ उपभोक्ताओं का भी शोषण कर रहे हैं। केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में कॉर्पोरेट लूट के लिए अनुकूल माहौल बना रहा है।
मसौदे में कॉरपोरेट उद्योगों और व्यापारियों को कच्चे माल की आपूर्ति करने वाले प्राथमिक उत्पादकों के साथ लाभकारी मूल्य के रूप में अधिशेष का एक निश्चित प्रतिशत साझा करने के लिए उत्तरदायी बनाने पर कोई नियामक खंड शामिल नहीं है। इस प्रकार भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार कॉरपोरेट हितों के आगे आत्मसमर्पण कर रही है, साथ ही किसानों की आत्महत्या और ऋणग्रस्तता को बढ़ावा दे रही है तथा किसानों को गरीबी में धकेल रही है।
एक शातिर चाल में, केंद्र यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि “सहकारी संघवाद” कृषि सुधारों को पुनर्जीवित कर सकता है और इस प्रकार एक राष्ट्रव्यापी मानकीकृत नीति के तहत कृषि उपज में बाधा मुक्त व्यापार किया जा सकता है। मसौदे में जीएसटी पर राज्य वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की तर्ज पर राज्य कृषि विपणन मंत्रियों की एक “अधिकार प्राप्त कृषि विपणन सुधार समिति” बनाने का सुझाव दिया गया है। ताकि “राज्यों को राज्य एपीएमसी अधिनियमों में सुधार प्रावधानों को अपनाने, नियमों को अधिसूचित करने व एकल लाइसेंसिंग/पंजीकरण प्रणाली एवं एकल शुल्क के माध्यम से कृषि उपज के लिए एकीकृत राष्ट्रीय बाजार की ओर बढ़ने के लिए राज्यों के बीच आम सहमति बनाई जा सके”।
मसौदे में केंद्र की मंशा बहुत स्पष्ट है, जब वह सुझाव देता है कि राज्य मंत्रियों की इस अधिकार प्राप्त समिति को “कृषि विपणन, समान बाजार शुल्क और किसानों को लाभ पहुचने वाले अन्य मुद्दों तथा व्यापार करने में आसानी की दृष्टि से, बाधा मुक्त कृषि व्यापार के लिए एक कानून लाने का प्रयास करना चाहिए”। यह विडंबना है कि केंद्र ने जीएसटी पर अधिकार प्राप्त समिति का उदाहरण दिया, जहां केंद्र राज्यों के लिए नियम और शर्तें तय कर रहा था और राज्य के वित्त मंत्रियों ने सार्वजनिक रूप से असहायता एवं विरोध व्यक्त किया है।
महत्वपूर्ण रूप से, मसौदा में एपीएमसी अधिनियम को निरस्त करने के बाद बिहार की मंडियों की “दयनीय” स्थिति का उद्धरण देना आत्म-विरोधाभास है। यह आत्म-विरोधाभासी इसलियें है, क्योंकि दिल्ली सीमओं पर लड़े गए किसान संघर्ष के चरम पर, आरएसएस-भाजपा नेता और केंद्र सरकार के करीबी कॉर्पोरेट साथी यह कहानी फैला रहे थे कि बिहार में एपीएमसी अधिनियम को समाप्त करना कृषि बाजारों को विनियमित करने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मसौदे के अनुसार 2006 में एपीएमसी अधिनियम को निरस्त करने के समय बिहार में 95 एपीएमसी मंडिया थी। 95 एपीएमसी मंडियों में से 54 मार्केट यार्ड सुविधाओं के साथ स्थापित की गई थी और 41 किराए के परिसर में चल रही थी। मसौदे में कहा गया है, “एपीएमसी अधिनियम के निरस्त होने के साथ, किराए के परिसर में चलने वाले 41 एपीएमसी मंडियों ने काम करना बंद कर दिया। 54 एपीएमसी मंडिया अभी भी मौजूद हैं, हालांकि दयनीय स्थिति में हैं।”
कृषि के कॉर्पोरेटीकरण की आवश्यकता पर मसौदा बिल्कुल स्पष्ट है, यह कृषि में “सुधार” को एकमात्र तरीका मानता है। उदाहरण के लिए, मसौदा मोदी की पसंदीदा, बहुप्रचारित परियोजना एफपीओ योजना को कॉर्पोरेट पैठ को आगे बढ़ाने के उपकरण के रूप में देखता है। यह कृषि क्षेत्र में काम करने वाले बड़े व्यापारिक घरानों के साथ अनुबंध खेती की व्यवस्था में प्रवेश करने के लिए क्लस्टर आधारित एफपीओ के लिए अनुकूल माहौल बनाकर किया जा रहा है। एफपीओ योजना को बढ़ावा देने में सीआईआई और फिक्की जैसे कॉर्पोरेट लॉबिंग समूहों द्वारा दिखाई गई असाधारण उत्सुकता के पीछे के वर्ग हित सामने आ रहे है। वायदा और विकल्प बाजारों के माध्यम से वित्तीयकरण को गहरा करने के सुझावों में से भी इस में बड़े व्यापारिक घरानों की पकड़ स्पष्ट होती है। इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी को घरेलू खाद्य उद्योग पर हावी होने और उसे नियंत्रित करने का मौका मिल जाएगा। जिससे भारत के लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
अखिल भारतीय किसान सभा एवं हिमाचल किसान सभा भारतीय कृषि को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने के भाजपा-आरएसएस सरकार के प्रयासों का डटकर विरोध करेगी। साथ ही किसान सभा मांग करता है कि केंद्र सरकार इस मसौदे को तुरंत वापस ले और इसके बजाय किसान संगठनों एवं राज्य सरकारों के साथ सार्थक बातचीत करे। किसान सभा अपनी सभी इकाइयों से आह्वान करता है कि वे भारत भर में 23 दिसंबर 2024 को जिला स्तर पर इस नीति की प्रतियां जलाने के एसकेएम के विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेंगे